शायद इसी को उम्र का तकाज़ा कहते हैं
मुझमें अब मुहब्बत के हौसले नहीं रहे
दिल आ भी जाता है गर अब किसी पर
तो उसे चाहने के हौसले नहीं रहे
अबकी बार जो किसी से हो गयी मुहब्बत
तो दुआ है फिर उससे कोई फासले नहीं रहें
शायद इसी को उम्र का तकाज़ा कहते हैं
मुझमें अब मुहब्बत के हौसले नहीं रहे
दिल आ भी जाता है गर अब किसी पर
तो उसे चाहने के हौसले नहीं रहे
अबकी बार जो किसी से हो गयी मुहब्बत
तो दुआ है फिर उससे कोई फासले नहीं रहें
Comments
Post a Comment