कभी कभी सोचता हूँ
वो शाम जो तेरे साथ गुज़री
वो क्या हसीन शाम थी
कभी कभी सोचता हूँ
मेरे आज में आख़िर क्या है
जिसे मैं उस एक शाम के ख़ातिर
लुटा न दूँ
कभी कभी सोचता हूँ
की क्यों मुझे उस वक़्त ये दिखा ही नहीं
की कैसी मरहूम हो जाएगी ज़िन्दगी तेरे बगैर
कभी कभी
जब जिंदगी से फुर्सत में आता हूँ
तो सोचता हूँ
Comments
Post a Comment