बोहोत बार सोचता हूँ

बोहोत बार सोचता हूँ
भीड़ में तुझे जो खोजता हूँ
कहीं तू अचानक
नज़र आ ही गई
तो क्या होगा?
अगर तुझसे कुछ कहा तो क्या होगा?
नज़रें चुरा के गर भगा तो क्या होगा?
क्या ऐसी भी कोई जगह है
जहाँ तुम और मैं
अपने इतिहास से परे होकर भी मिल सकें?
अगर हम ऐसी किसी जगह मिले
तो क्या होगा?
बोहोत बार सोचता हूँ

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