न जाने क्या बात थी उस एक कड़वे अलफ़ाज़ में

न जाने क्या बात थी उस एक कड़वे अलफ़ाज़ में
की उसने हज़ारों अच्छी बातों के असर को फ़ना कर डाला
काश की कभी मैं भी इतना असरदार बन पाऊँ
तो शायद किसी टूटे खिलौने को फिर से जोड़ पाऊँ...

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