क्या सचमें तुमनें कभी सोच के देखा है
की तुम होगी इसी दुनियाँ में
मगर मेरी नहीं होगी
हम दोनों कहीं कहीं अपने दिनों को काट रहे होंगे
याद करते भी होंगे तो कुछ कहते नहीं होंगे
हम दोनों होंगे
मगर साथ नहीं होंगे
क्या तब हम एक दूसरे के शहर आकर भी
यूँ ही चले जाएंगे
या हम एक ही शहर में रहकर अनजान रह जाएंगे
क्या सोचा है ये तुमनें कभी?
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