देने को तो सागर को भी है प्यार बहुत,
पर लेता है मानव केवल तुंग हिमालय से,
सागर का पानी खारा है सब ओर भरा ....
वह रोता है एकांत - स्वयं के दामन में,
बहुत हो गयी चिल्लाहट सागर के खारेपन पे,
इक बार जरा लहरों के भीतर झाकों तो,
पाषाण हिला दें, हैं ऐसी भावनाएं भरी हुईं,
उस तलहट में, निर्माण- नीव जिसकी है दर्द उठाने में,
सागर है बलवान, क्रोध का स्वामी है,
पर यह आडम्बर है की वह अभिमानी है,
हुंकार भर के जो घूमा करता है जग में,
हैं उसकी भी आशाएं कुछ इन बच्चों जैसीं,
माया है यह की हिमालय ऊँचा है ,
आधारभूत उसका भी है मात्र एक तिनके में,
सत्य तो यह है की बिखरी केवल समता है,
नश्वर यह संसार, कोई न ऊँचा-न नीचा है,
न रोतीं हैं ये झोपड़ियाँ, न अट्टालिकाओं में अट्टाहास है,
जीवन के सच का, यदि देखो तो - मरघट में ही वास है,
यदि निराधार इस जग में भी - आपस में हममें प्यार न हो - विश्वास न हो,
मानव जीवन के अर्थों का आभास न हो, कोई आस न हो ...
तो क्या बन जायेगा यह जग, इसका तो मुझे गुमान नहीं....
पर तब तक खरा होगा सागर - जब तक हममें हो प्यार नहीं ||
पर लेता है मानव केवल तुंग हिमालय से,
सागर का पानी खारा है सब ओर भरा ....
वह रोता है एकांत - स्वयं के दामन में,
बहुत हो गयी चिल्लाहट सागर के खारेपन पे,
इक बार जरा लहरों के भीतर झाकों तो,
पाषाण हिला दें, हैं ऐसी भावनाएं भरी हुईं,
उस तलहट में, निर्माण- नीव जिसकी है दर्द उठाने में,
सागर है बलवान, क्रोध का स्वामी है,
पर यह आडम्बर है की वह अभिमानी है,
हुंकार भर के जो घूमा करता है जग में,
हैं उसकी भी आशाएं कुछ इन बच्चों जैसीं,
माया है यह की हिमालय ऊँचा है ,
आधारभूत उसका भी है मात्र एक तिनके में,
सत्य तो यह है की बिखरी केवल समता है,
नश्वर यह संसार, कोई न ऊँचा-न नीचा है,
न रोतीं हैं ये झोपड़ियाँ, न अट्टालिकाओं में अट्टाहास है,
जीवन के सच का, यदि देखो तो - मरघट में ही वास है,
यदि निराधार इस जग में भी - आपस में हममें प्यार न हो - विश्वास न हो,
मानव जीवन के अर्थों का आभास न हो, कोई आस न हो ...
तो क्या बन जायेगा यह जग, इसका तो मुझे गुमान नहीं....
पर तब तक खरा होगा सागर - जब तक हममें हो प्यार नहीं ||
bohot badhiya...
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