न वो मयस्सर था कभी, न मुनासिब
फिर उसके खोने का ग़म इतना गहरा क्यों है?
उसे नहीं है मेरी तमन्ना, तो ना सही
इस एक बात पे दिल यूँ ठहरा क्यों है?
सबकी तो सुनता है वो सारी दुआएं
मेरी दुवाओं की बारी में ही वो बहरा क्यों है?
सोचा था आगे बढ़ गया हूँ मैं उस वाक्ये से फिर
अब भी ज़ेहन में हर वक़्त उसी का चेहरा क्यों है?
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