कुछ ऐसी अजीब सी बात है उसमें
की उसे देखते ही
मैं सारी हिकाऱतें, शिकायतें,
ख़ुद को दिलाई कसमें,
कहने की सारी बातें...
भूल जाता हूँ
कुछ ऐसा दीवाना है दिल उसका
की बच्चों सी ज़िद करता है
उसकी ख़ातिर
न सुनता, न सोता है,
आधी रात को रोता है
मैं उसे कहाँ से लाऊँ
दिल को क्या समझाऊं
कुछ ऐसी अजीब सी बात है उसमें
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