ज़ाया

उनके न होने से शहर 
अपना सा नहीं रहता
ज़िन्दगी एक समतल ज़मीन है
उसपे कोई पहाड़, कोई दरिया नहीं रहता
इतनी ज़ाया जा रही है ऐसी मुहब्बत की अब
ख़ुदा से उम्मीद तो है पर यक़ीन नहीं रहता  

Comments