फिर वही मोड़ है

ज़िन्दगी में शायद फिर वही मोड़ है
तेरे आने के पहले ही
तेरे जाने का बोझ है
न सांस आती है इसमें
न दिमाग चलता है
रूह ने कोई ज़हर खा लिया शायद 
हवाएं बंद हो गईं हैं
सड़क सुनसान है 
शहर बदरंग
दिल के इस बोझ को ए दिल 
रो के ही सही 
पर बाहर तो निकाल 

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