आज़ाद

अज़ाब आता है तुम्हें मेरी निगाह पड़ने से 
पास बुला लूँ तो जुर्म होता है 
पास होकर भी तो तू दूर होती है इतनी
दूर होकर जितनी कभी न थी
हिक़ारत है तुझे मेरी मुहब्बत से ही जब
तो ऐसे देवता की इबादत 
मुझे भी अब मंजूर नहीं
जा मैंने तुझे इस ख़ुदाई से आज़ाद किया 
जा मैंने अपनी दुवाओं से तुझे आज़ाद किया 

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