इबादत

तू ख़्वाब थी कोई जो जमीं पर उतर आई
तू एक दुआ थी दिलचस्प ख़्वाहिश की
जो जिस्म में ढलकर 
रूह पहनकर
आ गयी
तू ही बता 
मैं तेरी इबादत कैसे न करूं?

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